हरियाली अमावस्या: प्रकृति के सम्मान और सांस्कृतिक रंगों का उत्सव
राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी उदयपुर न केवल अपने महलों, झीलों और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के पारंपरिक पर्व-त्योहारों की झलक भी अनोखी होती है। इन्हीं में से एक है हरियाली अमावस्या, जिसे मानसून की शुरुआत और प्रकृति के नवजीवन का स्वागत करने के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यंत खास है।
हरियाली अमावस्या क्या है?
हरियाली अमावस्या श्रावण मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो सामान्यतः जुलाई-अगस्त माह में आती है। यह पर्व वर्षा ऋतु के स्वागत और हरियाली के आगमन का प्रतीक होता है। यह दिन विशेष रूप से प्रकृति, हरियाली और नए जीवन चक्र का उत्सव माना जाता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन उदयपुर में इसका स्वरूप सबसे खास होता है।
उदयपुर में हरियाली अमावस्या का महत्व
उदयपुर में हरियाली अमावस्या का पर्व एक सार्वजनिक मेले के रूप में मनाया जाता है, जिसमें हजारों स्थानीय लोग और पर्यटक भाग लेते हैं। यह मेला तीन दिवसीय होता है, जिसमें अलग-अलग दिन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए अलग रखे जाते हैं।
इस दिन शहर के प्रमुख पार्कों और सार्वजनिक स्थलों पर विशाल झूले, पारंपरिक खेल, नृत्य-गीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और स्वादिष्ट स्थानीय व्यंजन लोगों को आकर्षित करते हैं।
मुख्य आयोजन स्थल
- सज्जन निवास गार्डन (गुलाब बाग):
उदयपुर का सबसे प्रमुख आयोजन स्थल यही है। यहां हरियाली अमावस्या पर भारी भीड़ उमड़ती है। बच्चों के लिए झूले, खिलौने, महिलाओं के लिए चूड़ी-बिंदी की दुकानें और पारंपरिक हस्तशिल्प की प्रदर्शनी होती है। - फतेहसागर झील:
झील के किनारे हरियाली के बीच घूमना, नाव की सवारी करना और स्ट्रीट फूड का आनंद लेना हरियाली अमावस्या का मुख्य आकर्षण होता है। - शहर के मंदिर और धार्मिक स्थल:
इस दिन लोग विशेष पूजा-पाठ, वृक्षारोपण, और व्रत रखते हैं। मंदिरों में विशेष आरती और भजन-कीर्तन होते हैं।
लोक मान्यताएं और परंपराएं
- वृक्षारोपण का महत्व:
इस दिन वृक्ष लगाना पुण्यकारी माना जाता है। कई संस्थाएं और स्कूल मिलकर पौधारोपण अभियान चलाते हैं। - परंपरागत व्रत:
कई महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और घर में तुलसी, नीम, पीपल जैसे पौधों की पूजा करती हैं। - नए कपड़े और श्रृंगार:
महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं और मेहंदी, चूड़ी, बिंदी के साथ सजती हैं। इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। - नृत्य और लोक गीत:
राजस्थान की पारंपरिक घूमर, कालबेलिया और मेवाड़ी गीतों की प्रस्तुति मेले में देखने को मिलती है।
हरियाली अमावस्या और पर्यावरण संदेश
यह पर्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता का संदेश भी देता है। हरियाली अमावस्या हमें याद दिलाती है कि प्रकृति की रक्षा करना, पेड़ लगाना और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना हमारे कर्तव्य हैं। इस दिन स्कूल और कॉलेजों में पर्यावरण रैली, पोस्टर प्रतियोगिता और नुक्कड़ नाटक जैसे कार्यक्रम भी होते हैं।
पर्यटन और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा
हरियाली अमावस्या न केवल सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि स्थानीय व्यापारियों और शिल्पकारों के लिए भी आय का एक बड़ा जरिया है। मेले में सजे हुए स्टॉल्स, हस्तशिल्प, पारंपरिक गहने, मटका कला, लोक चित्र आदि पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
निष्कर्ष
हरियाली अमावस्या का पर्व उदयपुर के जनजीवन और संस्कृति का सजीव प्रतिबिंब है। यह त्योहार एक ओर जहां प्रकृति से जुड़ाव को बढ़ाता है, वहीं दूसरी ओर पारंपरिक लोक जीवन, रीति-रिवाज और लोककला को जीवित रखने में सहायक है। यदि आप उदयपुर में मानसून के समय घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो हरियाली अमावस्या का मेला आपको एक अनूठा, रंगीन और हर्षोल्लास से भरा अनुभव देगा।