महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती: वीरता, आत्मसम्मान और देशभक्ति का उत्सव

परिचय

भारत के इतिहास में ऐसे अनेक वीर योद्धा हुए हैं जिन्होंने अपने पराक्रम और त्याग से आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। उनमें सबसे प्रमुख नाम है महाराणा प्रताप का। उनकी 485वीं जयंती (वर्ष 2025 में) पूरे देश में विशेष श्रद्धा और गर्व के साथ मनाई जा रही है। यह दिन सिर्फ एक महान योद्धा के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और देशप्रेम के आदर्शों का स्मरण है।


जीवन परिचय

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। वे सिसोदिया राजवंश के राजा और महाराणा उदय सिंह द्वितीय के पुत्र थे। उनका बचपन से ही स्वाभिमानी, साहसी और निडर व्यक्तित्व था। वे न्यायप्रिय और प्रजावत्सल शासक के रूप में प्रसिद्ध थे।


स्वतंत्रता की रक्षा में संघर्ष

महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा योगदान भारत के इतिहास में उनकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया गया संघर्ष है। जब मुगल सम्राट अकबर ने समस्त भारत को अपने अधीन करने की योजना बनाई, तब अधिकांश राजपूत राजाओं ने समझौता कर लिया, लेकिन महाराणा प्रताप ने जीवन भर मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की

हल्दीघाटी का युद्ध (21 जून 1576) इस संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण है। इसमें महाराणा प्रताप की सेना ने मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया, भले ही संख्या और संसाधनों में वे पीछे थे। यह युद्ध भले ही निर्णायक न रहा हो, लेकिन यह भारतीयों के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक बन गया।


चेतक: वीरता का प्रतीक

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने भी अद्वितीय वीरता दिखाई। घायल होने के बावजूद चेतक ने अपने स्वामी को युद्धभूमि से सुरक्षित निकाला। चेतक की बलिदान गाथा आज भी लोकगीतों और कहानियों में अमर है।


आदर्श जीवन और प्रेरणा

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कभी विलासिता को महत्व नहीं दिया। उन्होंने जंगलों में रहकर जीवन यापन किया, लेकिन अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया। वे आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं कि कठिनाइयों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए।


485वीं जयंती का महत्व

महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती पर राजस्थान सहित पूरे देश में झांकियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भाषण प्रतियोगिताओं और श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया जा रहा है। यह दिन हमें हमारे इतिहास की गौरवशाली परंपरा से जोड़ता है और यह स्मरण कराता है कि राष्ट्रभक्ति और आत्मबल सबसे बड़ी शक्ति हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *