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उदयपुर की लोक संगीत और नृत्य परंपरा: मेवाड़ की आत्मा

udaipur

राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित उदयपुर, केवल अपनी झीलों और महलों के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी विश्वविख्यात है। इस संस्कृति की आत्मा है – लोक संगीत और लोक नृत्य, जो न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि मेवाड़ की जीवनशैली, परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।


🎵 लोक संगीत: स्वर, सरगम और संस्कृति का संगम

उदयपुर का लोक संगीत मेवाड़ी बोली में गाया जाता है और इसमें भावनाओं की गहराई, वीरता की गाथाएं, प्रेम की कहानियाँ, देवी-देवताओं की स्तुतियाँ और जीवन के उत्सव झलकते हैं।

प्रमुख लोक संगीत शैलियाँ:

  1. पानीहारी – यह गीत महिलाएं गाते हुए जल भरने जाती हैं। इनमें प्रेम और सामाजिक जीवन की झलक मिलती है।
  2. गोरबंद – ऊँट की सजावट को लेकर गाया जाने वाला उत्सवी गीत, जो पशु-पालन संस्कृति को दर्शाता है।
  3. ढोला-मारू की गाथा – प्रेम और बलिदान की कहानी पर आधारित गीत, जिसे कव्वाली शैली में भी प्रस्तुत किया जाता है।
  4. जागरण और भजन – देवी-देवताओं के पूजन में गाए जाने वाले भक्ति गीत।

प्रमुख वाद्य यंत्र:

  • रावणहत्था: मेवाड़ की सबसे प्राचीन तारवाद्य परंपरा।
  • मोरेचंग, भपंग, ढोलक, मंजीरा और नागरौ जैसे वाद्य परंपराओं को संगीतमय आधार देते हैं।

💃 लोक नृत्य: रंग, ताल और उत्सव की अभिव्यक्ति

उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों में लोक नृत्य केवल प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि वे समाज की सामूहिक चेतना और भावनाओं की अभिव्यक्ति हैं। त्योहारों, विवाहों और मेलों में इन नृत्यों की विशेष भूमिका होती है।

प्रमुख लोक नृत्य शैलियाँ:

  1. गवरी
    • भील जनजाति का धार्मिक और नाट्य नृत्य।
    • शिव-पार्वती और राक्षसों की कथा पर आधारित यह नृत्य 40 दिनों तक चलता है।
    • इसमें संवाद, गीत और नृत्य का त्रिवेणी संगम होता है।
  2. घूमर
    • उदयपुर क्षेत्र की राजपूतानी महिलाओं का प्रमुख नृत्य।
    • घाघरा लहराते हुए गोल-गोल घूमती महिलाओं का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है।
    • यह नृत्य शिष्टता, सौंदर्य और नारीत्व की छवि है।
  3. तेरहताली
    • महिलाओं द्वारा बैठकर किया जाने वाला नृत्य जिसमें वे अपने शरीर पर 13 मंजीरे (ताल) बांधकर उन्हें थापों से बजाती हैं।
    • यह नृत्य कमांड समुदाय की महिलाओं द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में किया जाता है।
  4. डांगरिया नृत्य
    • विशेषकर गवरी उत्सव के दौरान किया जाता है। यह एक युद्ध शैली से प्रेरित सामूहिक नृत्य है।

🏞️ परंपरा और आधुनिकता का संगम

आज भी उदयपुर के गांवों में त्योहारों और विवाह समारोहों में ये लोक नृत्य और संगीत जीवंत हैं। साथ ही, अब इन कलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किया जा रहा है।

शिल्पग्राम उत्सव, जो हर साल उदयपुर में आयोजित होता है, लोक संस्कृति का जीवंत महाकुंभ है। इसमें देशभर के कलाकारों के साथ-साथ मेवाड़ के लोक कलाकार भी अपने गीतों और नृत्यों के माध्यम से दर्शकों का मन मोह लेते हैं।


🌟 संरक्षण की आवश्यकता

हालांकि आधुनिकता के प्रभाव और पॉप कल्चर के बढ़ते प्रभाव के कारण ये पारंपरिक कलाएं चुनौती का सामना कर रही हैं। इसलिए ज़रूरी है कि:

  • इन कलाओं को शिक्षा संस्थानों में शामिल किया जाए।
  • लोक कलाकारों को सरकारी सहयोग और मंच प्रदान किया जाए।
  • डिजिटल माध्यमों से इन परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाए।
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