राजस्थान अपने समृद्ध इतिहास, शाही परंपराओं और रंगीन संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां के उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि ये राज्य की सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक जीवनशैली को भी दर्शाते हैं। इन त्योहारों और मेलों के माध्यम से राजस्थान की झलक मिलती है, जहां लोक संगीत, नृत्य, कला और आस्था का संगम देखने को मिलता है। आइए, राजस्थान के कुछ प्रमुख उत्सवों पर नजर डालते हैं।
गणगौर राजस्थान का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह उत्सव भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का प्रतीक है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां अच्छे वर की प्राप्ति की कामना करती हैं। रंग-बिरंगी पोशाकें पहने महिलाएं शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के साथ शोभायात्रा निकालती हैं और इसे विशेष गीतों और पारंपरिक नृत्यों के साथ मनाया जाता है।
हर साल 21 से 31 दिसंबर के बीच उदयपुर के शिल्पग्राम में यह उत्सव आयोजित किया जाता है। यह महोत्सव भारत के विभिन्न राज्यों की लोककला, शिल्पकला और पारंपरिक हस्तकला को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण मंच है। यहाँ पर कारीगर अपने हस्तनिर्मित वस्त्र, कढ़ाई, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की नक्काशी और अन्य पारंपरिक कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। सांस्कृतिक संध्या में लोक संगीत और नृत्य प्रस्तुतियाँ भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
वसंत ऋतु के आगमन पर मेवाड़ महोत्सव विशेष रूप से उदयपुर में मनाया जाता है। यह उत्सव गणगौर पर्व से जुड़ा हुआ है और इसमें पारंपरिक रूप से सजे हुए जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम और लोक नृत्य का आयोजन किया जाता है। पूरे शहर को रोशनी और रंगों से सजाया जाता है, जिससे यह पर्व और भी आकर्षक बन जाता है। भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियों के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है, जो पिछोला झील तक पहुँचकर संपन्न होती है।
हरियाली अमावस्या राजस्थान में वर्षा ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाई जाती है। इस अवसर पर लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन उदयपुर के फतेहसागर झील के किनारे विशाल मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, झूले और पारंपरिक खान-पान का विशेष महत्व होता है। यह दिन पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी संदेश देता है।
हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन उदयपुर में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाओं को भव्य रूप से सजे हुए रथों में रखकर शहर के विभिन्न हिस्सों से निकाला जाता है। यह यात्रा भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है, जिसमें वे श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। इस वर्ष यह यात्रा 21 जून को आयोजित की जाएगी।
जल-झुलनी एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और श्रद्धालु उपवास रखते हैं। उदयपुर में इस अवसर पर विभिन्न जुलूस निकाले जाते हैं, जो गणगौर घाट पर संपन्न होते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की मूर्तियों को जल में स्नान कराया जाता है और भक्तगण भजन-कीर्तन करते हुए अपनी आस्था प्रकट करते हैं।